जब जीवात्मा नर्कों से निकलने के बाद जड़ योनि अर्थात पेड़-पौधों की योनि में आती है, उसके बाद कीड़े-मकोड़ों की यानि में आती है फिर पशुओं की योनि में गाय-बैल का शरीर उसे मिलता है तब वह चैरासी लाख योनियों का अन्तिम शरीर होता है। शरीर छूटने के बाद गाय लड़की बनती है और बैल को लड़के का शरीर मिलता है। यह ईश्वरीय विधान है। चैरासी का कोई जीव यदि संतों के संपर्क में आ जाता है, उनके शरीर से स्पर्श कर जाता है तो वो सीधे मनुष्य शरीर में आता है। संत यदि किसी पेड़ का फल खा या किसी पेड़ का दातून कर लें तो वह जीव मनुष्य शरीर का अधिकारी हो जाता है। यह विशेषता केवल संतों की है।
संत उन्हंे कहते हैं जो सत्लोक से आते हैं और ईश्वर, ब्रह्म, पारब्रह्म रूपी उनके आधीन हैं। संत ही सबके सच्चे पिता हैं और उनकी मर्जी के खिलाफ एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। आरम्भ में सिवाय मालिक सतपुरूष के यहां कुछ नहीं था। और न शब्द ही था। अरबों-खरबों वर्षों तक धुंधकार रहा। न जमीन थी, न आसमान था और न शब्द ही था। संतों ने बताया कि रचना की शुरूआत शब्द से हुई। सत्लोक से सुरतों यानी रूहों को नीचे उतारा गया। निरंजन भगवान ने विधान बनाकर जीवों को यहां फंसा लिया। संतों का अवतार हुआ वे सत्लोक से यहां आऐ और नाम भेद बताया कि ऐ जीवात्माओं तुम अपने घर चलो। तुम्हारा घर सत्लोक है। काल ने तुम्हें यहां कर्म बन्धन में फंसा लिया है। कबीर साहब जीवों को समझाते हुऐ कहते हैं किः-
कह कबीर वा घर चलो जहां काल न जाई
जो जीव संतों की शरण में आ जाते हैं, भजन करते हैं वो अपने घर वापस सत्लोक चले जाते हैं और जन्मने-मरने का चक्कर सदा के लिए छेट जाता है।
संत उन्हंे कहते हैं जो सत्लोक से आते हैं और ईश्वर, ब्रह्म, पारब्रह्म रूपी उनके आधीन हैं। संत ही सबके सच्चे पिता हैं और उनकी मर्जी के खिलाफ एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। आरम्भ में सिवाय मालिक सतपुरूष के यहां कुछ नहीं था। और न शब्द ही था। अरबों-खरबों वर्षों तक धुंधकार रहा। न जमीन थी, न आसमान था और न शब्द ही था। संतों ने बताया कि रचना की शुरूआत शब्द से हुई। सत्लोक से सुरतों यानी रूहों को नीचे उतारा गया। निरंजन भगवान ने विधान बनाकर जीवों को यहां फंसा लिया। संतों का अवतार हुआ वे सत्लोक से यहां आऐ और नाम भेद बताया कि ऐ जीवात्माओं तुम अपने घर चलो। तुम्हारा घर सत्लोक है। काल ने तुम्हें यहां कर्म बन्धन में फंसा लिया है। कबीर साहब जीवों को समझाते हुऐ कहते हैं किः-
कह कबीर वा घर चलो जहां काल न जाई
जो जीव संतों की शरण में आ जाते हैं, भजन करते हैं वो अपने घर वापस सत्लोक चले जाते हैं और जन्मने-मरने का चक्कर सदा के लिए छेट जाता है।
No comments:
Post a Comment