गुरू का ध्यान कर प्यारे


गुरू का ध्यान कर प्यारे । बिना इस के नहीं छुटना ।।
नाम के रंग में रंग जा । मिले तोहि धाम निज अपना ।।
गुरू की सरन दृढ़ कर ले । बिना इस काज नहीं सरना ।।
लाभ और मान क्यों चाहे । पड़ेगा फिर तुझे देना ।।
करम जो जो करेगा तू फ वही फिर भोगना भरना ।।
जगत के जाल में ज्यों त्यों । हटो मरदानगी करना ।।
जिन्होनं मार मन डाला । उन्ही को सूरमा कहना ।।
बड़ा बैरी ये मन घट में । इसी का जीतना कठिना ।।
पड़ो तुम इसही के पीछे । और सबही जतन तजना ।।
गुरू की प्रीत कर पहिले । बहुरि घट शब्द को सुनना ।।
मान लो बात यह मेरी । करें मत और कुछ जतना ।।
हार जब जाय मन तुझसे । चढ़ा दे सुर्त को गगना ।।
और सब काम जग झुठा । त्याग दे इसी को गहना ।।
कहै स्वामी समझाई । गहो अब नाम की सरना ।।

Monday, 20 June 2011

क्या आप जानते हैं?


 संत चमत्कार का कोई महत्व नहीं देते। चमत्कारों के द्वारा परमात्मा की इच्छा व मौज में दखल देने से उसकी मौज में राजी रहना संतमत में कहीं अधिक महत्वपूर्ण समझा जाता है। संतों में इतनी अपार सामथर््य और शक्ति है जिसका अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता। वे परमात्मा के प्यारे पुत्र हैं जिन्हें उसने अपना सबकुछ सौंप रखा है। उनसे ईश्वर, ब्रह्म, पारब्रह्म सभी डरते रहते हैं। वे चमत्कारों को बच्चों का खेल समझते हैं जैसे एक बच्चे का साबुन के पानी में बुलबुले उठाकर खेलना। लोग चमत्कारों को आदर, भय और ताज्जुब से जरूर देखते हैं पर वास्तव में उनमें कोई आत्मिक या ईश्वरीय बात नहीं है। चमत्कार मन के खेल हैं। मन जब पूरी तरह एकाग्र हो जाता है तो अद्भुत शक्तियां प्राप्त कर लेता है, अंधे को आंख दे सकता है और कंगाल को अमीर बना सकता है। वह दौड़ती हुई रेल को रोक सकता है, बारिश करा सकता है, जहां चाहे वहां पहंुच सकता है, भूत उतार सकता है और बहुत से असाधारण काम कर सकता है। जो अपने मन को जीत लेेता है वह कुदरत की ताकतों को बादशाह हो जाता है। जड़ पदार्थ और प्रकृति एक दासी की तरह उसका हुकुम मानती हैं। ऊँचे आत्मिक मण्डलों पर पहंुच जाने पर पर मनुष्य को आलौकिक सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं। संत अपने शिष्यों को सलाह देते हैं कि इन ताकतों को वे कभी काम में न लें।

No comments:

Post a Comment