गुरू का ध्यान कर प्यारे


गुरू का ध्यान कर प्यारे । बिना इस के नहीं छुटना ।।
नाम के रंग में रंग जा । मिले तोहि धाम निज अपना ।।
गुरू की सरन दृढ़ कर ले । बिना इस काज नहीं सरना ।।
लाभ और मान क्यों चाहे । पड़ेगा फिर तुझे देना ।।
करम जो जो करेगा तू फ वही फिर भोगना भरना ।।
जगत के जाल में ज्यों त्यों । हटो मरदानगी करना ।।
जिन्होनं मार मन डाला । उन्ही को सूरमा कहना ।।
बड़ा बैरी ये मन घट में । इसी का जीतना कठिना ।।
पड़ो तुम इसही के पीछे । और सबही जतन तजना ।।
गुरू की प्रीत कर पहिले । बहुरि घट शब्द को सुनना ।।
मान लो बात यह मेरी । करें मत और कुछ जतना ।।
हार जब जाय मन तुझसे । चढ़ा दे सुर्त को गगना ।।
और सब काम जग झुठा । त्याग दे इसी को गहना ।।
कहै स्वामी समझाई । गहो अब नाम की सरना ।।

Wednesday, 22 June 2011

message og swami ji



Date : 21-Jun-2011
                                                             JAIGURUDEV
People were surprised to see the pace of the work being done at Baba Jaigurudev’s Ashram by His Satsangis. A lot of work is done in a short span of time to which eyewitnesses say that even the Army cannot do it this fast. Next month, during Gurupoornima Programme from 12thto 16th July, there will be Satsang and also Naamdan according  to GuruMaharaj’s wishes. There will be a huge gathering and the managers have started  making arrangements .
All the corruption cases and scams have made the people of India very angry. People are now enlightened and it is feared that a revolution similar to the ones which happened in Muslim countries might happen in India.
JAIGURUDEV DISCOURSE
Saints have always laid great stress on the food you eat. But those who are Satsangis have to be even more careful. It is very important to be vegetarian, to earn honestly, and to earn your living honestly.
Those who have left Vegetarianism, and started vices, they will not have control over their brain or heart.
Even the eatables have their own effect. If the eatables come from illicit money then it has a bad effect. That is why before starting your meal, one should think of the Guru and submit all to Him.

Monday, 20 June 2011

why we are suffring


                                     
 बाबा जी ने बहुत पहले कहा था कि जो समय चल रहा है वह लोगों के लिए अच्छा नहीं है। इस समय में लोग अपना-अपना धीरज तोड़ देंगे तो दूसरी तरफ लोगों में धार्मिक भावना मजबूत हागी। जो लोग धर्म पर चल रहे हैं उनमें आस्था और विश्वास और दृढ़ होगा। और जो लोग धर्म को छोड़ चुके हैं, आस्था विश्वास खत्म हो गया है उन लोगों को बहुत पीढा उठानी है। जिन लोगों में बेचैनी बढ़ रही है परेशानी बढ़ रही है, भय बढ़ रहा है उन लोगों को भी सही और सच्चे उपदेश की जरूरत है।
 इस तरह की उथल-पुथल होती रहती है और होनी भी चाहिऐ क्योंकि जब मानव बुद्धि सही-गलत का निर्णय नहीं ले पाती है तो ये समय का उतार चढ़ाव होता है। वो तो महापुरूष हैं जो रोकते हैं और चाहते हैं कि विनाश न हो, लोग सच्चे रास्ते पर आ जाऐं, ईश्वरवादी मानवतावादी हो जाऐं, खुदा परस्त हो जाऐं लेकिन जब लोग मानने को तैयार नहीं होते हैं तो वो कुदरत को ढील भी दे सकते हैं।
 कृष्ण भगवान ने कभी नहीं चाहा था कि महाभारत हो। उन्होंने हर तरह से समझाने की कोशिश की लेकिन अंत में अर्जुन से कहा कि उठा लो गाण्डीव। उसके बाद जो हुआ वो आप जानते हो। जब महापुरूष ढील दे देते हैं तो ऐसा भयानक दृश्य जो जाता है कि उसको देखकर लोग भयभीत हो जाते हैं। उस समय में कर्मानुसार अच्छे लोगों की रक्षा हो जाती है और अधर्मियों का विनाश हो जाता है।
 इस राज को कोई राजा नहीं जानता कोई मंत्री मिनिस्टर नहीं जानता। इसे केवल योगी सिद्ध पुरूष संत और फकीर जानते हैं। लोग तो घर में क्या हो रहा है उसका भेद नहीं जान पाते हैं तो कर्मों के और कुदरत के इन भेदों को क्या समझेंगे, कया जानेंगे। महापुरूषों की शिक्षा, उनके उपदेश बहुत ठोस होते हैं और मानवमात्र के लिए कल्याणकारी होते हैं। महापुरूष लोक परलोक दोनों के हित के उपदेश देते हैं। आपका लोकहित भी हो और साथ ही साथ आत्म चिन्तन आत्म साधना भी हो।

क्या आप जानते हैं?


 संत चमत्कार का कोई महत्व नहीं देते। चमत्कारों के द्वारा परमात्मा की इच्छा व मौज में दखल देने से उसकी मौज में राजी रहना संतमत में कहीं अधिक महत्वपूर्ण समझा जाता है। संतों में इतनी अपार सामथर््य और शक्ति है जिसका अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता। वे परमात्मा के प्यारे पुत्र हैं जिन्हें उसने अपना सबकुछ सौंप रखा है। उनसे ईश्वर, ब्रह्म, पारब्रह्म सभी डरते रहते हैं। वे चमत्कारों को बच्चों का खेल समझते हैं जैसे एक बच्चे का साबुन के पानी में बुलबुले उठाकर खेलना। लोग चमत्कारों को आदर, भय और ताज्जुब से जरूर देखते हैं पर वास्तव में उनमें कोई आत्मिक या ईश्वरीय बात नहीं है। चमत्कार मन के खेल हैं। मन जब पूरी तरह एकाग्र हो जाता है तो अद्भुत शक्तियां प्राप्त कर लेता है, अंधे को आंख दे सकता है और कंगाल को अमीर बना सकता है। वह दौड़ती हुई रेल को रोक सकता है, बारिश करा सकता है, जहां चाहे वहां पहंुच सकता है, भूत उतार सकता है और बहुत से असाधारण काम कर सकता है। जो अपने मन को जीत लेेता है वह कुदरत की ताकतों को बादशाह हो जाता है। जड़ पदार्थ और प्रकृति एक दासी की तरह उसका हुकुम मानती हैं। ऊँचे आत्मिक मण्डलों पर पहंुच जाने पर पर मनुष्य को आलौकिक सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं। संत अपने शिष्यों को सलाह देते हैं कि इन ताकतों को वे कभी काम में न लें।

satsang


satsang


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DO YOU KNOW

 जब जीवात्मा नर्कों से निकलने के बाद जड़ योनि अर्थात पेड़-पौधों की योनि में आती है, उसके बाद कीड़े-मकोड़ों की यानि में आती है फिर पशुओं की योनि में गाय-बैल का शरीर उसे मिलता है तब वह चैरासी लाख योनियों का अन्तिम शरीर होता है। शरीर छूटने के बाद गाय लड़की बनती है और बैल को लड़के का शरीर मिलता है। यह ईश्वरीय विधान है। चैरासी का कोई जीव यदि संतों के संपर्क में आ जाता है, उनके शरीर से स्पर्श कर जाता है  तो वो सीधे मनुष्य शरीर में आता है। संत यदि किसी पेड़ का फल खा या किसी पेड़ का दातून कर लें तो वह जीव मनुष्य शरीर का अधिकारी हो जाता है। यह विशेषता केवल संतों की है।
 संत उन्हंे कहते हैं जो सत्लोक से आते हैं और ईश्वर, ब्रह्म, पारब्रह्म रूपी उनके आधीन हैं। संत ही सबके सच्चे पिता हैं और उनकी मर्जी के खिलाफ एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। आरम्भ में सिवाय मालिक सतपुरूष के यहां कुछ नहीं था। और न शब्द ही था। अरबों-खरबों वर्षों तक धुंधकार रहा। न जमीन थी, न आसमान था और न शब्द ही था। संतों ने बताया कि रचना की शुरूआत शब्द से हुई। सत्लोक से सुरतों यानी रूहों को नीचे उतारा गया। निरंजन भगवान ने विधान बनाकर जीवों को यहां फंसा लिया। संतों का अवतार हुआ वे सत्लोक से यहां आऐ और नाम भेद बताया कि ऐ जीवात्माओं तुम अपने घर चलो। तुम्हारा घर सत्लोक है। काल ने तुम्हें यहां कर्म बन्धन में फंसा लिया है। कबीर साहब जीवों को समझाते हुऐ कहते हैं किः-
कह कबीर वा घर चलो जहां काल न जाई
 जो जीव संतों की शरण में आ जाते हैं, भजन करते हैं वो अपने घर वापस सत्लोक चले जाते हैं और जन्मने-मरने का चक्कर सदा के लिए छेट जाता है।